जागा हूँ रात भर मैं


इक प्यार का दिया तो तुम भी यहीं जलाना
बेघर सा घर हुआ जो , घर भी वहीँ बसाना 

अंतर में "मैं "भरा है उसको जो कर दे खाली  
मेहमा सी हो गयी है दो दिन कि ये दीवाली 

अंतर में दीप जलना,अँधियारा छांट लेना 
बदले जो इस धरा को,उजियारा बाँट लेना 

जब जब भी है वो रोया, पत्थर भी गल गया है  
जागा है रात भर वो ,  हिम सा पिघल गया है 

अंतर में दीप जलना,अँधियारा छांट लेना 
बदले जो इस धरा को,उजियारा बाँट लेना 

पूजा का थाल मन है , कोई दीप तुम जलाना 
तम को हटा ह्रदय से, कोई आरती भी गाना   

जब जब भी हूँ मैं रोया, पत्थर भी गल गया है  
जागा हूँ रात भर मैं ,  हिम सा पिघल गया है 
Ashish ( Sagar Suman)


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